न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Thu, 21 May 2020 01:43 PM IST
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
– फोटो : ANI
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सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और बेसिक शिक्षा बोर्ड की ओर से पेश हुए राकेश मिश्रा को कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं पड़ी। शिक्षामित्रों की तरफ से मुकुल रोहतगी ने अदालत में दलीलें रखते हुए कहा कि एकल पीठ ने हमारे दावे के समर्थन में फैसला दिया था लेकिन डिविजन ने हमारे पक्ष को पूरी तरह से नहीं सुना।
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह मामला हमारी संविदा के नवीकरण और नियुक्ति की प्रक्रिया में लगातार किए गए बदलाव को भी लेकर है। इसपर न्यायमूर्ति ललित ने पूछा कि कितने शिक्षामित्र को नियुक्त किया गया थ? जवाब देते हुए रोहतगी ने कहा कि 30 हजार, फिर सरकार ने शिक्षामित्रों की बजाय 69 हजार प्राथमिक शिक्षकों की नई नियुक्ति निकाली।
शिक्षामित्रों की तरफ से दलील देते हुए रोहतगी ने कहा कि परीक्षा के बाद नया कटऑफ भी तय किया गया। इसपर न्यायमूर्ति ललित ने पूछा कि क्या कटऑफ विज्ञापन का हिस्सा था? जवाब में रोहतगी ने कहा कि नहीं, सात जनवरी को परीक्षा होने के बाद न्यूनतम कटऑफ तय किया गया था। शिक्षकों के लिए 60-65 प्रतिशत और शिक्षामित्रों के लिए 40-45 प्रतिशत।
न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि यानी आपके दो सुझाव हैं कि बीएड कभी भी अर्हता नहीं थी और परीक्षा के बाद कटऑफ तय करना गलत है। इसका जवाब देते हुए वरिष्ठ वकील ने कहा कि शिक्षामित्रों को बहुत कम वेतन मिल रहा है।
इसके बाद न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि मतलब आप चाहते हैं कि 45 फीसदी सामान्य और 40 फीसदी आरक्षित वर्ग के लिए किया जाए। जवाब में रोहतगी ने कहा हां, इससे कई लोगों को मौका मिल सकेगा। दलीलें सुनने के बाद अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।