लॉकडाउन के दौरान संपत्तियों झेल बने चीनी मिलों और किसानों के लिए अगले साल भी मुश्किलें खड़ी करने वाला है। कम खपत के कारण चीनी मिलों को चीनी बेचने में कठिनाई आ रही है तो क्रूड ऑयल सस्ता होने से एथेनॉल की मांग भी बहुत अधिक है। इन वजहों से चीनी मिलें सील संकट झेल रही हैं जो अगले साल और बढ़ने के आसार हैं। माना जा रहा है कि किसानों को गन्ना बेचने और भुगतान की समस्या भी खड़ी हो जाएगी।
भारत दुनिया में सबसे अधिक चीनी पैदा करता है, और खपत भी करता है, लेकिन लॉकडाउन से जो खपत होती थी, वह नहीं हो रही है। चीनी मिलों के पास स्टॉक बढ़ रहा है। अगले साल इसके और बढ़ने के आसार हैं। जाहिर है कि अगर चीनी नहीं बिकेगी तो किसानों के भुगतान में कठिनाई आएगी।
भारत सरकार सरकार के अधीन कार्य करने वाले मूल्य कृषि मूल्य और लागत आयोग के अनुसार भारत में हर साल चीनी की खपत 275 लाख टन की है, जो कि कुल उत्पादन का लगभग 65-70 प्रतिशत होता है। भारत का चीनी उद्योग लगभग एक लाख करोड़ रुपये का है, आयोग के अनुसार वर्ष 2018 तक भारत में 732 चीनी मिलें स्थापित हैं, जिनमें 524 मोड़ हैं।
चीनी की खपत घटी
उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ के महासचिव दीपक भंडारा कहते हैं, ये जो 70 प्रतिशत चीनी की खपत भारत में होती है। शीतल पेय बनाने वाली कंपनियाँ, आइसक्रीम, मिठाई की दुकानों, शादी की दुकानों में सबसे अधिक चीनी की खपत होती है। जो लॉकडाउन के कारण ठप है।
इस समय सिर्फ घरों में सप्लाई हो रही है। चीनी मिलों का स्टॉक बढ़ रहा है, बिक्री न होने से पूरक का संकट भी पैदा हो रहा है। अगर एक्सपोर्ट और चीनी की खपत नहीं बढ़ी, तो अगले पूरे साल चीनी के मूल्य दबे रहेंगे, साथ ही, अगले सीजन में किसानों के भुगतान पर संकट गहरा हो सकता है।
दीपक अगले सीजन के संभावित संकट को कुछ इस तरह समझाते हैं, ें चीनी मिलें पूरे साल चीनी बेच कर अपना खर्च चलाती हैं, और किसानों को भुगतान भी करती रहती हैं। अगर चीनी नहीं बिकेगी तो, अगले साल के स्टॉक में शामिल होगी, और अगले गन्ने के सीजन की चीनी भी आ जाने से स्टॉक बढ़ेगा, तो अधिक चीनी खपन होगा।
मिलों के सामने संक्रमण का संकट बढ़ने वाला है। मुजफ्फरनगर के अमीनगर सराय निवासी गन्ना किसान रघुनंदन शर्मा भी इस खतरे को भांप रहे हैं। कहते हैं, इस साल अपना गन्ना जैसे-तैसे बेच लिया लेकिन उनके गांव में बहुत गन्ना खेतों में खड़ा है। अब अगर मिलों की चीनी नहीं बिकेगी तो समस्या अगले साल और बढ़नी ही है, जिसका सीधा असर हम किसानों पर पड़ेगा।
आंतरिक चीनी उद्योग पर असर
आने वाले साल चीनी मिलों और किसानों के लिए किस तरह से परेशानी वाला होगा यह समझाते हुए सीतापुर जिले में स्थित एक चीनी मिल के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा: दुनिया में क्रूड ऑयल की दुकानों कम चल रही हैं, ब्राजील में ऐथेनॉल की खपत कम होगी, तो वह चीनी बनाएगा।
आंतरिक स्तर पर सबसे अधिक चीनी का एक्सपर्ट जर्सी ही करता है। मौजूदा समय में विश्व में कुल एक्सप का 44.7 प्रतिशत अकेले जेन करता है, जबकि भारत की इसमें भाग महज 3.2 प्रतिशत ही है। यदि ब्राजील सस्ती कीमत पर चीनी निर्यात करेगा तो भारत के लिए निर्यात और मुश्किल होगा।
लॉकडाउन में हमारा चैलेंज था, कि गन्ने की पेराई करे चलो, पूरे भारत को देखें तो यूपी अकेला ऐसा राज्य है जिसने अकेले 119 मिलें चलाईं। निंरतर गन्ने की पेराई हो रही है, छह मई तक के आंकड़ों के अनुसार हम पिछले साल की तुलना में इस साल चार करोड़ क्विंटल गन्ने की अधिक पेराई कर चुके हैं। किसानों का 55 प्रतिशत भुगतान हो गया है, जैसे ही परिस्थितियाँ बदलती हैं, हम गन्ना किसानों का भुगतान कराएंगे। – सुरेश राणा, क्रेन मंत्री, चीनी उद्योग और गन्ना विकास, उत्तर प्रदेश
15 जून तली चलाई बीगी चीनी मिलें
इस दौरान हमारे सामने चीनी मिलें चलाने का संकट सबसे पहले था, हम गन्ने की पेराई कर रहे हैं, 15 जून तक चीनी मिलें चलेंगी। शिशु संकट के दौरान पूरी कोशिश होगी कि चीनी मिलें जितने की भी चीनी भाषा, उसके 85 प्रतिशत गन्ना किसानों को भगुतान अवश्य हों, बाकी से वे अपना खर्च चलाएं। -संजय आर भूसरेड्डी, गन्ना और चीनी आयुक्त
खपत कम होने से चीनी की दुकानों को भी घना लगता है
इस लॉकडाउन का असर चीनी की कीमतों पर पड़ा है, उत्पादन की अपेक्षा खपत कम होने से 3300 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाली चीनी को आज 3100 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए हैं। शिशु संकट से जूझ रही चीनी मिलों को यूपी सरकार ने सहूलियत देते हुए आदेश दिया कि वह किसानों को सीधा चीनी दे सकती है, लेकिन यह प्रस्ताव भी किसानों को रास नहीं आया।
‘इस्मा’ के महानिदेशक अविनाश शर्मा ने एक एजेंसी को जानकारी देते हुए कहा कि मौजूदा हालात में चीनी मिलों पर किसानों का बकाया बढ़कर 18,000 करोड़ रुपये हो गया है, जबकि बीते महीने मार्च-अप्रैल में चीनी की बिक्री पिछले साल की तुलना में 10 लाख टन ज्यादा है। कम हुआ है
भारत में 30 अप्रैल, 2020 तक चीनी का उत्पादन
राज्य |
उत्पादन (लाख टन) |
यूपी |
116.52 |
महाराष्ट्र |
60 |
कर्नाटक |
33.8 |
तमिलनाडु |
5.41 |
गुजरात |
9.02 |
अन्य राज्य |
32.5 |
(स्रोत-भारतीय शुगर मिल संगठन)
सार
लॉकडाउन के दौरान देश में चीनी की कम खपत, एथेनॉल की घटती मांग और आंतरिक शुगर बाजार में बदली परिस्थितियों के कारण मौजूदा समय के साथ-साथ अगले सीजन में भी चीनी मिलों के सामने संक्रमण का संकट बढ़ेगा, इसका सीधा असर भारत के लगभग एक लाख करोड़ रुपये के चीनी उद्योग के साथ ही 5 करोड़ गन्ना किसानों को भी मिलेगा। मनीषी की रिपोर्ट …
विस्तार
लॉकडाउन के दौरान संपत्तियों झेल बने चीनी मिलों और किसानों के लिए अगले साल भी मुश्किलें खड़ी करने वाला है। कम खपत के कारण चीनी मिलों को चीनी बेचने में कठिनाई आ रही है तो क्रूड ऑयल सस्ता होने से एथेनॉल की मांग भी बहुत अधिक है। इन वजहों से चीनी मिलें सील संकट झेल रही हैं जो अगले साल और बढ़ने के आसार हैं। माना जा रहा है कि किसानों को गन्ना बेचने और भुगतान की समस्या भी खड़ी हो जाएगी।
भारत दुनिया में सबसे अधिक चीनी पैदा करता है, और खपत भी करता है, लेकिन लॉकडाउन से जो खपत होती थी, वह नहीं हो रही है। चीनी मिलों के पास स्टॉक बढ़ रहा है। अगले साल इसके और बढ़ने के आसार हैं। जाहिर है कि अगर चीनी नहीं बिकेगी तो किसानों के भुगतान में कठिनाई आएगी।
भारत सरकार सरकार के अधीन कार्य करने वाले मूल्य कृषि मूल्य और लागत आयोग के अनुसार भारत में हर साल चीनी की खपत 275 लाख टन की है, जो कि कुल उत्पादन का लगभग 65-70 प्रतिशत होता है। भारत का चीनी उद्योग लगभग एक लाख करोड़ रुपये का है, आयोग के अनुसार वर्ष 2018 तक भारत में 732 चीनी मिलें स्थापित हैं, जिनमें 524 मोड़ हैं।
चीनी की खपत घटी
उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ के महासचिव दीपक भंडारा कहते हैं, ये जो 70 प्रतिशत चीनी की खपत भारत में होती है। शीतल पेय बनाने वाली कंपनियाँ, आइसक्रीम, मिठाई की दुकानों, शादी की दुकानों में सबसे अधिक चीनी की खपत होती है। जो लॉकडाउन के कारण ठप है।
इस समय सिर्फ घरों में सप्लाई हो रही है। चीनी मिलों का स्टॉक बढ़ रहा है, बिक्री न होने से पूरक का संकट भी पैदा हो रहा है। अगर एक्सपोर्ट और चीनी की खपत नहीं बढ़ी, तो अगले पूरे साल चीनी के मूल्य दबे रहेंगे, साथ ही, अगले सीजन में किसानों के भुगतान पर संकट गहरा हो सकता है।
चीनी स्टॉक बढ़ेगा तो पूंजी संकट होगा
दीपक अगले सीजन के संभावित संकट को कुछ इस तरह समझाते हैं, ें चीनी मिलें पूरे साल चीनी बेच कर अपना खर्च चलाती हैं, और किसानों को भुगतान भी करती रहती हैं। अगर चीनी नहीं बिकेगी तो, अगले साल के स्टॉक में शामिल होगी, और अगले गन्ने के सीजन की चीनी भी आ जाने से स्टॉक बढ़ेगा, तो अधिक चीनी खपन होगा।
मिलों के सामने संक्रमण का संकट बढ़ने वाला है। मुजफ्फरनगर के अमीनगर सराय निवासी गन्ना किसान रघुनंदन शर्मा भी इस खतरे को भांप रहे हैं। कहते हैं, इस साल अपना गन्ना जैसे-तैसे बेच लिया लेकिन उनके गांव में बहुत गन्ना खेतों में खड़ा है। अब अगर मिलों की चीनी नहीं बिकेगी तो समस्या अगले साल और बढ़नी ही है, जिसका सीधा असर हम किसानों पर पड़ेगा।
आंतरिक चीनी उद्योग पर असर
आने वाले साल चीनी मिलों और किसानों के लिए किस तरह से परेशानी वाला होगा यह समझाते हुए सीतापुर जिले में स्थित एक चीनी मिल के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा: दुनिया में क्रूड ऑयल की दुकानों कम चल रही हैं, ब्राजील में ऐथेनॉल की खपत कम होगी, तो वह चीनी बनाएगा।
आंतरिक स्तर पर सबसे अधिक चीनी का एक्सपर्ट जर्सी ही करता है। मौजूदा समय में विश्व में कुल एक्सप का 44.7 प्रतिशत अकेले जेन करता है, जबकि भारत की इसमें भाग महज 3.2 प्रतिशत ही है। यदि ब्राजील सस्ती कीमत पर चीनी निर्यात करेगा तो भारत के लिए निर्यात और मुश्किल होगा।
हालात बदलने के लिए केवल किसानो को कराएंगे पूरा भुगतान
लॉकडाउन में हमारा चैलेंज था, कि गन्ने की पेराई करे चलो, पूरे भारत को देखें तो यूपी अकेला ऐसा राज्य है जिसने अकेले 119 मिलें चलाईं। निंरतर गन्ने की पेराई हो रही है, छह मई तक के आंकड़ों के अनुसार हम पिछले साल की तुलना में इस साल चार करोड़ क्विंटल गन्ने की अधिक पेराई कर चुके हैं। किसानों का 55 प्रतिशत भुगतान हो गया है, जैसे ही परिस्थितियाँ बदलती हैं, हम गन्ना किसानों का भुगतान कराएंगे।
– सुरेश राणा, क्रेन मंत्री, चीनी उद्योग और गन्ना विकास, उत्तर प्रदेश
15 जून तली चलाई बीगी चीनी मिलें
इस दौरान हमारे सामने चीनी मिलें चलाने का संकट सबसे पहले था, हम गन्ने की पेराई कर रहे हैं, 15 जून तक चीनी मिलें चलेंगी। शिशु संकट के दौरान पूरी कोशिश होगी कि चीनी मिलें जितने की भी चीनी भाषा, उसके 85 प्रतिशत गन्ना किसानों को भगुतान अवश्य हों, बाकी से वे अपना खर्च चलाएं। -संजय आर भूसरेड्डी, गन्ना और चीनी आयुक्त
खपत कम होने से चीनी की दुकानों को भी घना लगता है
इस लॉकडाउन का असर चीनी की कीमतों पर पड़ा है, उत्पादन की अपेक्षा खपत कम होने से 3300 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाली चीनी को आज 3100 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए हैं। शिशु संकट से जूझ रही चीनी मिलों को यूपी सरकार ने सहूलियत देते हुए आदेश दिया कि वह किसानों को सीधा चीनी दे सकती है, लेकिन यह प्रस्ताव भी किसानों को रास नहीं आया।
इस तरह से वृद्धि बकाया है
‘इस्मा’ के महानिदेशक अविनाश शर्मा ने एक एजेंसी को जानकारी देते हुए कहा कि मौजूदा हालात में चीनी मिलों पर किसानों का बकाया बढ़कर 18,000 करोड़ रुपये हो गया है, जबकि बीते महीने मार्च-अप्रैल में चीनी की बिक्री पिछले साल की तुलना में 10 लाख टन ज्यादा है। कम हुआ है
भारत में 30 अप्रैल, 2020 तक चीनी का उत्पादन
राज्य |
उत्पादन (लाख टन) |
यूपी |
116.52 |
महाराष्ट्र |
60 |
कर्नाटक |
33.8 |
तमिलनाडु |
5.41 |
गुजरात |
9.02 |
अन्य राज्य |
32.5 |
(स्रोत-भारतीय शुगर मिल संगठन)