रिक्शा चलाने वाला कैसे बना 18 हजार से ज्यादा रन बनाने वाला आगंतुक

मोहम्मद यूसुफ (मोहम्मद यूसुफ) का नाम पाकिस्तान के महान खिलाड़ियों में शूमार होता है, दाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने इंटरनेशनल क्रिकेट में 18 हजार से ज्यादा रन बनाए।

नई दिल्ली। 27 अगस्त, 1974 को पाकिस्तान के लाहौर की झुग्गी-बस्ती में एक बच्चे ने जन्म लिया, जिसका नाम यूसुफ योहाना था। एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ ये बच्चा आगे चलकर मोहम्मद यूसुफ बना। मोहम्मद यूसुफ (मोहम्मद यूसुफ) का नाम पाकिस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में बड़े अदब से लिया जाता है। यूसुफ के रिकॉर्ड उनकी महानता दर्शाते हैं। यूसुफ ने पाकिस्तान के लिए 90 टेस्ट में 52 से ज्यादा की औसत से 7530 रन बनाए, जिसमें 24 शतक शामिल थे। इसके अलावा यूसुफ ने 288 वनडे मैचों में 9720 रन ठोके, जिसमें उनकी बल्ले से कुल 15 शतक निकले। ये आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि यूसुफ पाकिस्तान के महानतम शिष्यों में से एक हैं। दिलचस्प बात ये है कि लाहौर की झुग्गी-बस्ती में पैदा हुआ एक बच्चा, जिसके परिवार को दो जून की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी, आखिर वो इतना बड़ा खिलाड़ी कैसे बन गया। आखिर मोहम्मद यूसुफ ने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया। आइए आपको बताते हैं कि उस घटना के बारे में जिन्होंने मोहम्मद यूसुफ की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया।

मोहम्मद यूसुफ की मुश्किल जिंदगी

मोहम्मद यूसुफ (मोहम्मद यूसुफ) बेहद ही गरीब परिवार में जन्मे थे, उनके पास पक्के मकान तक नहीं थे। घर झुग्गियों में था और पिता रेलवे स्टेशन में सफाई कर्मचारी थे। घर का खर्चा नहीं चल रहा था तो यूसुफ बेहद ही कम उम्र में टेलर की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया। लेकिन दूसरे बच्चों की तरह यूसुफ को भी क्रिकेट खेलने का शौक था। बैट खरीदने के पैसे जेब में नहीं थे, लेकिन यूसुफ ने लकड़ी के फट्टे से अपने लिए बैट तैयार किया हुआ था और वो टेनिस बॉल से खेलते हुए थे। यूसुफ बैटिंग से बैटिंग नहीं पेंटिंग करते थे। मतलब उनका बल्ला गेंद पर इतना नजाकत से चलता था कि पिटने वाले गेंदबाज को भी यूसुफ से प्यार हो जाए।इस वक्त यूसुफ की उम्र महज 12 साल थी। यूसुफ जब 16 साल के हुए तो लाहौर के गोल्डन जिमखाना क्लब की नजर उनपर पड़ी। यूसुफ अच्छा क्रिकेट खेलते थे, लेकिन उनके घर भी चल रहे थे और इसलिए वे टेलर की दुकान पर काम करते थे।

ऐसी बदसूरत यूसुफ की जिंदगीएक दिन यूसुफ (मोहम्मद यूसुफ) टेलर की दुकान पर काम कर रहे थे और एक स्थानीय क्लब के कुछ खिलाड़ी उनकी तलाश में घुस आए थे। दरअसल क्लब की प्लेइंग इलेवन पूरी नहीं हो रही थी तो उन्होंने यूसुफ को खेलने के लिए कहा। उन्होंने तब मनाया जब वे उन्हें उठाकर ले गए। यूसुफ ने उस मैच में शतक ठोक दिया। वो ब्रैडफॉर्ड क्रिकेट लीग का मैच था और फिर यूसुफ ने इस टूर्नामेंट के और भी मैच खेले और वो उसके टॉप स्कोरर रहे।

बस यहीं से यूसुफ (मोहम्मद यूसुफ) की जिंदगी बदल गई और उन्होंने क्रिकेट पर काफी ध्यान दिया। वर्ष 1998 में यूसुफ की जिंदगी में वो लम्हा आया जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा। यूसुफ को पाकिस्तान की टीम में चुना गया और वह दक्षिण अफ्रीका दौरे पर टीम के साथ गए। डरबन में 26 फरवरी को यूसुफ ने डेब्यू किया। हालांकि वो दो पारियों में महज 6 रन बना सके। इसके बाद यूसुफ को जिम्बाब्वे के खिलाफ बुलावायो टेस्ट में मौका मिला और उन्होंने दोनों पारियों में अर्धशतक ठोक अपना लोहा मनवा दिया। इसके बाद उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ अपने पहले टेस्ट सेंचुरी लगाई। अपने घरेलू मैदान लाहौर में यूसुफ ने नाबाद 120 रनों की पारी खेली।

यूसुफ का धमाका

पहले टेस्ट शतक लगाने के बाद यूसुफ (मोहम्मद यूसुफ) कभी भी नहीं थे। उन्होंने वर्ष 2002-03 में जिम्बाब्वे के खिलाफ वनडे सीरीज में बिना आउट हुए 405 रन बनाए थे, यह एक विश्व रिकॉर्ड है। साल 2006 में मोहम्मद यूसुफ ने खुद को महान बल्लेबाज साबित किया। उन्होंने एक कैलेंडर ईयर में खेले 11 टेस्ट मैचों में 9 शतक और 3 अर्धशतक जड़ दिए। यूसुफ ने एक साल में 1788 टेस्ट रन बनाए जो अब भी विश्व रिकॉर्ड है। इस दौरान उनका औसत 99 से बहुत अधिक रहा। सोचिए अगर क्लब के लड़के उनसे जबरन टेलर की दुकान से उठाकर नहीं ले जाते तो क्या यूसुफ यहां तक ​​पहुंच पाते?

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प्रथम प्रकाशित: 9 मई, 2020, शाम 5:34 बजे IST


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