नई दिलवाली: चीन के वुहान में पैदा हुए कोरोनावायरस ने पूरी दुनिया में चीन को शक की निगाहों से देखने पर मजबूर कर दिया है। अब तो देश उस पर संक्षिप के मामले में भी भरोसा करने से कतरा रहे हैं। भारत भी इनमें से एक है और वह चीन पर से निर्भरता ख्रेडम करने के लिए तैयारी शुरू कर चुका है। इस मामले में एक बड़ी खबर आई है कि किस तरह भारत सरकार अपने देश में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहती है।
जमीन तैयार हो रही है
भारत में निवेश करने वाली कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण सबसे बड़ी बाधाओं में से एक रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य सरकारें इस मामले पर साथ मिलकर काम कर रही हैं ताकि यहां आने वाले निवेशकों को जमीन मिलने में कोई कठिनाई न हो। ये वो प्रशासक होंगे जो कोरोनावायरस प्रकोप के बाद चीन के बजाय कहीं और निवेश करेंगे और भारत उन्हें उनके लिए जमीन और बाकी सुविधाएं देगा।
पता चला है कि भारत एक ऐसा लैंड पूल विकसित कर रहा है जिसका आकार यूरोपीय देश लक्समबर्ग के आकार से लगभग दोगुना है। इसे इसलिए विकसित किया जा रहा है ताकि चीन से बाहर जाने वाले उद्योगों को भारत आने के लिए लुभाया जा सके।
लक्जमबर्ग से दोगुनी जगह तय हुई
लेकजमबर्ग 2,43,000 हेक्टेयर में फैला है। वहीं ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, औद्योगिक गतिविधियों से जुड़े इस विशेष उद्देश्य के लिए देश भर में 4,61,589 हेक्टेयर क्षेत्र की पहचान की गई है, जो लक्जमबर्ग से लगभग दोगुनी है। इस क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों की 1,15,131 हेक्टेयर मौजूदा औद्योगिक भूमि शामिल है।
सरकार का मानना है कि बिजली, पानी और सड़क की सुविधा के साथ भूमि उपलब्ध कराने से कोरोनावायरस के कारण धीमी गति से चलने वाली अर्थव्यवस्था को नए निवेश आकर्षित करने में मदद मिल सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकार ने मैन्युफैक्टचरिंग को बढ़ावा देने के लिए जिन क्षेत्रों पर फोकस किया है उनमें- विद्युत, फार्मास्युटिकल्स, चिकित्सा उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स, भारी कंप्यूटर, सौर उपकरण, खाद्य पदार्थ, रसायन और वस्त्र शामिल हैं।
जानकारी के अनुसार, अब तक सरकार की निवेश एजेंसी इन्वेस्ट इंडिया में मुख्य रूप से जापान, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और चीन से इंक्वायरी आई हैं। वह चार देश भारत के शीर्ष 12 व्यापारिक भागीदारों से हैं, जिनके कुल द्विपक्षीय व्यापार 179.27 बिलियन डॉलर का है।
इसके अलावा, राज्यों को विदेशी निवेश में लाने के लिए अपने स्वयं के कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए भी अलग से कहा गया है। गौरतलब है कि निवेशकों को लुभाने के लिए तेजी से रणनीति बनाने के कदमों पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री ने 30 अप्रैल को एक बैठक भी की थी।