जानिए कैसे बदल गया कर्नाटक का करियर
गौतम गंभीर (गौतम गंभीर) के क्रिकेट करियर में ऐसा भी दौर था जब उन्हें अपने टैलेंट पर शक था, उन्हें खुद पर यकीन नहीं था। फिर ऐसा क्या हुआ कि गंभीर के करियर में, जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा
वहीं आईसीसी वनडे विश्व कप 2011 में एक बार फिर खिताबी की तुलना में गंभीर का बल्ला चला गया। श्रीलंका के खिलाफ गंभीर (गौतम गंभीर) ने 97 रनों की पारी खेली और टूर्नामेंट में 43 से ज्यादा कीऔसत से 393 रन बनाए। गंभीर की ये दो पारियां कई शकर्स के भारी हैं, क्योंकि उन्होंने बेहद कम भरे मैचों में खुद को बल्ले से साबित किया था। आपको बता दें कि गौतम गंभीर हमेशा ऐसे खिलाड़ी नहीं हैं। जो गंभीर मैदान पर भरोसेमंद बल्लेबाज दिखते थे, वही गंभीर कभी खुद पर ही भरोसा नहीं करते थे। आइए आपको बताते हैं कि गंभीर के करियर का वह टर्निंग प्वाइंट जिसने उनकी ही नहीं इस देश के क्रिकेट की भी किस्मत बदली है
गंभीर को स्वयं की काबिलियत पर शक था!
3 नवंबर 2004 को टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने वाले गौतम गंभीर (गौतम गंभीर) वनडे टीम का अहम हिस्सा बने थे। सफेद गेंद से उनकी बल्लेबाजी बिलकुल सही थी लेकिन इस बल्लेबाज को लाल गेंद के खिलाफ थोड़ी परेशानी होती थी। गंभीर अपने पहले टेस्ट की दोनों पारियों में फेल रहे। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वो 2 पारियों में महज 4 रन बना सके। हालांकि इसके बाद गंभीर ने दक्षिण अफ्रीका और बांग्लादेश के खिलाफ अच्छी पारियां खेली। इसके बाद वे फिर से 3-4 सीरीज में फ्लॉप रहे। मतलब गंभीर टेस्ट क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे और अंदर ही अंदर उन्हें खुद की काबिलियत पर शक होने लगा था। गंभीर को लगने लगा था कि शायद वो टेस्ट क्रिकेट नहीं खेलेंगे।इस तरह के बदलाव गंभीर का करियर बन गया
गौतम गंभीर (गौतम गंभीर) वर्ष 2008 में श्रीलंका दौरे के लिए चुने गए। ये एक कठिन दौरा था क्योंकि विरोधी टीम में मुरलीधरन और अजंता मेंडिस जैसे स्पिनर थे, जिनके खिलाफ रन बनाना आसान नहीं था। खुद की काबिलियत पर शक करते हुए गंभीर ने तो श्रीलंका के खिलाफ 3 मैचों की टेस्ट सीरीज में कमाल ही कर दिया। गंभीर ने इस श्रृंखला में 51.66 की औसत से 310 रन बनाए। वे वीरेंद्र सहवाग के बाद सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी बने। बस इस श्रृंखला में अच्छा प्रदर्शन करने के साथ ही उन्हें ये यकीन हो गया कि वो टेस्ट क्रिकेट भी खेल सकते हैं।
खुद गौतम गंभीर (गौतम गंभीर) ने एक इंटरव्यू में ये बात कही थी कि साल 2008 में श्रीलंका का दौरा उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट रहा। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि श्रीलंका यात्रा मेरे करियर का टर्निंग प्वाइंट थी। वहाँ मैं सहवाग के बाद सबसे ज्यादा रन बनाए थे। जिस तरह मैंने मुरलीधरन और मेंडिस जैसे गेंदबाजों का सामना किया, उसने मेरे अंदर विश्वास पैदा किया, मुझे लगा कि हां मैं भी टेस्ट क्रिकेट खेल सकता हूं। ‘
श्रीलंका दौरे के बाद गौतम का ‘गंभीर’ प्रदर्शन
2008 के श्रीलंका दौरे के बाद तो जैसे गौतम गंभीर (गौतम गंभीर) के तेवर ही बदल गए। उन्होंने विरोधी टीमों की नाक में दम कर दिया। 2008 में केवल ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत आई और गंभीर ने 77.16 के औसत से 463 रन ठोकते थे, जिसमें दो शतक शामिल थे। इसके बाद इंग्लैंड के खिलाफ 2 मैचों की टेस्ट सीरीज़ में गंभीर ने 361 रन के अंक हासिल किए, उनका औसत 90 से ज्यादा रहा।
टीवी दौरे पर खुद को साबित किया
किसी भी भारतीय बल्लेबाज के लिए न्यू की पिचों पर खेलना कभी आसान नहीं रहा लेकिन गौतम गंभीर ने इस दौरे पर भी 89 की औसत से 445 रन बनाए। इस दौरे पर गंभीर (गौतम गंभीर) ने 2 शतक और एक अर्धशतक लगाया। गंभीर ने नेपियर में 436 गेंदों में 137 रनों की पारी खेली। नेपियर टेस्ट की दूसरी पारी में गंभीर ने 643 मिनट तक बल्लेबाजी की। भारतीय क्रिकेट इतिहास में कभी कोई क्रिकेटर दूसरी पारी में इतने देर तक क्रीज पर टिक नहीं सका। गंभीर की इस पारी ने उन्हें एक अलग पहचान दी।
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प्रथम प्रकाशित: 6 मई, 2020, 4:48 PM IST
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