कोरोना प्रभाव: आजादी के बाद, अब ग्रामीणों को एक बड़ा मोड़ लेना होगा, शहरी आबादी के साथ प्रवासियों को इन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा – आजादी के बाद अब बड़े करवट लेंगे गांव, शहरी आदतों वाली ये मुश्किलें झेलनी होंगी प्रवासियों को


देश के प्रमुख समाजशास्त्री और जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ। आनंद कुमार कहते हैं कि आजादी के बाद पहले दफा ग्रामीण परिवेश को बड़ी करवट लेते हुए देखते हैं। ग्रामीण अंचल में ऐसे बदलाव सामने आएंगे, जिनमें शहरी आदतों वाली कई समस्याओं से झेलनी पड़ जाएगी।

गाँव की संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, क्राइम रेट, कोर्ट-कचहरी, पंचायती ढांचा, मनरेगा और अपना पराया, जैसे कई परिवर्तन देखने को मिलेंगे।

लोग जल्द से जल्द घर वापसी कर लें, फिर भी यही चाहत है

कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश में लॉकडाउन 3.0 चल रहा है। हर राज्य में ऐसे मजदूरों या अन्य लोगों को सेवा शुरू की जाती है, जिनके घर उनके पास जाना होता है। सभी राज्यों की ओर से श्रमिक विशेष ट्रेन चलाने के लिए केंद्र सरकार पर भारी दबाव है।

सभी प्रदेश चाहते हैं कि उसके लोग जल्द से जल्द घर वापसी कर लें। अभी गांव की तरफ सरकारों का उतना ध्यान नहीं है, क्योंकि दूसरे प्रदेशों में फंसे हुए लोगों को निकालने पर है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों ने गांव में मनरेगा को गति दे दी है। लोगों को कामधंधा मिल जाए, इसके लिए ग्रामीण विकास की कई योजनाओं पर काम शुरू हुआ है।

महिलाओं को कठिनाई होगी

डॉ। आनंद कुमार के अनुसार, अब जिस तरह से गांव में भीड़ बढ़ने लगी है, उससे पहले पहले से मौजूद और बाहर से आए लोगों को कई तरह की नई बातों का सामना करना पड़ेगा। अभी तक वे लोग शहर में रह रहे थे। कुछ परेशानी होती है तो तुरंत अस्पताल पहुंच जाते हैं।

पुलिस का काम होता है तो थाने में चले जाते हैं। कोर्ट-कचहरी भी गुंजाइश में पड़ रही हैं। लेकिन अब गांव में जब शहरों से लोगों की वापसी होगी तो सुरक्षा का पहलू, वो भी महिलाओं को लेकर, सबसे महत्वपूर्ण रहेगा।

गांव के परिवेश में अभी महिलाओं के लिए खुद के साथ हुए अपराध या दूसरों के मामले में बोलने के लिए उतनी सहजता से कदम उठाना संभव नहीं होगा, जैसा कि शहरों में होता है। गांव में महिला पर कई तरह का सामाजिक दबाव रहता है।

वहाँ बड़े बुजुर्गों और पंचायत की बात इतनी आसानी से नहीं की जा सकती है। शहर के मुकाबले गांव में कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं की समस्या भी बढ़नी होगी।

मौजूदा संसाधनों में भाग होगा तो संबंधों पर भी असर पड़ेगा

अभी तक वे लोग शहर में ही लंबे समय से रहते आए हैं। साल में या ब्याह शादी में कभी कभार आना होता था। संबंध मधुर बने हुए थे। अब घर की जमीन में हिस्सा मांगा जाएगा। 24 घंटे का साथ रहेगा तो बर्तन भी खड़केंगे। गांवों में अभी उतने संसाधन नहीं हैं, जितने वे लोग शहर में देखकर आए हैं।

रोजगार का संकट रहेगा। सरकार मनरेगा को एक सीमा तक ही बढ़ा सकती है। अभी हर राज्य में मनरेगा के तहत कामगारों की सूची बढ़ती जा रही है। गाँव के मौजूदा संसाधनों में जब भाग की बात आएगी तो उसका सीधा असर पड़ेगा।

पिछले एक दशक से गांव में प्राथमिक पाठशालाएं तो बहुत कम हो गई हैं। डॉ। आनंद भी मानते हैं कि गांव में होने वाले लोगों के सामने बच्चों की पढ़ाई का संकट बना रहेगा। प्राथमिक विद्यालय में दाखिला दिलाते हैं तो उसके अनुसार फीस का जुगाड़ करना होगा।

पंचायत भी एक नई जमात का सामना करने के लिए तैयार रही

समाजशास्त्री डॉ। आनंद के अनुसार, अब पंचायत को एक नई जमात का सामना करना पड़ेगा। ये वे लोग होंगे, जिन्होंने शहर का लोकतंत्र देखा है। पंचायत को अपना काम करने का ढंग बदलना पड़ेगा। नए लोग वहाँ से एक सेफ्टी वाल की तरह काम करेंगे। इस मामले में जो लोग अपक्षित रहे हैं, उन्हें एक सहारा मिल जाएगा।

मोबाइल से जुड़ी कई नई सेवा गांव में शुरू होगी। लॉकडाउन पीरियड में शहरों के शुद्ध उपयोगकर्ता 20.5 करोड़ हैं तो गांव के 22.7 करोड़ हो गए हैं। ये प्रमाण है कि गांव में परिवर्तन होगा। सरकार और पंचायत को डॉ।, पुलिस, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के संसाधन मुहैया कराने के लिए अपनी नीतियां बदलनी होंगी।

कारण, शहर में बनेकर आए लोग सुविधाओं की मांग करेंगे। पीएचडी चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के प्रमुख अर्थशास्त्री एसपी शर्मा का कहना है कि शहरों में फिर से नई व्यवस्था बनने में समय लगेगा। तब तक सरकार को गांव पर विशेष ध्यान देना होगा। कुछ महीने तक सभी को कुछ काम धंधा मिल जाए, इसके लिए नई योजनाएं स्वीकृत होनी चाहिए।





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