- रिटायर्ड जनरल अब्दुल जलील बख्तावर फराह प्रांत के पुलिस प्रमुख रह चुके हैं
- जलील पिछले दिनों तालिबान में शामिल हुए, एक देर वे आतंकवादियों के सबसे बड़े दुश्मन थे
दैनिक भास्कर
12 मई, 2020, 05:13 PM IST
काबुल। अफगानिस्तान में फराह प्रांत के पूर्व पुलिस प्रमुख जनरल अब्दुल जलील बख्तावर अब तालिबान में शामिल हो गए हैं। एक देर वो इस आतंकी संगठन के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक थे। जलील के तालिबान का हिस्सा बनने के बाद कुछ फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैं। ये वो सिर पर पगड़ी और गले में मालाएं पहने नजर आते हैं।
बख्तावर का इस आतंकी संगठन में शामिल होना हैरान करने वाला है। इसकी एक वजह ये है कि रिटायर होने के बावजूद वो निजी संगठन बनाकर तालिबान से लड़ रहे थे।
दोनों बेटों के अच्छे पद
बख्तावर के दो बेटे बड़े पदों पर हैं। एक लोकल असेंबली का सदस्य है तो दूसरा डिप्टी गवर्नर। एक बेटे की हेलिकॉप्टर और में मौत हुई थी। तब समन्वयिबान ने उसका शव कई दिनों तक अपने पास रखा था। बाद में ट्रांसमिशन के बाद प्रत्येक परिवार को सौंप दिया गया था। आतंकियों ने बख्तावर को खत्म करने के लिए यूसाइड बॉम्बर को भी भेजा था। हालांकि, वो कामयाब नहीं पाए गए। रविवार को वे पुराने दुश्मन तालिबान के दोस्त बन गए।
कॉर्डिबन मजबूती होगी
जलील का तालिबान के साथ होना इस आतंकी संगठन के लिए ईमानदार का प्रतिनिधि होगा। उसके प्रोपेगंडा को ताकत मिलेगी। अमेरिका समन्वयिबान से प्रतिबद्ध कर चुका है। उसके सैनिक लौटने लगे। दो दशक पुरानी जंग का आलम ये है कि कहीं परिवार दुश्मन हो गए हैं तो कहीं पिता और बेटे आमने सामने हैं। अफगान गृह मंत्रालय के प्रवक्ता तारिक आर्यन ने कहा, “ये बेहद चौंकाने वाली बात है कि एक रिटायर्ड जनरल ने शांति, सम्मान और स्थिरता की जिंदगी की बजाए दुश्मन और दहशतगर्दी को चुना।”
बेटे ने मुद्दा को तवज्जो नहीं दी
जलील के बेटे मसूद ने पिता के तालिबान में शामिल होने की खबरों को टालने की कोशिश की। मसूद फराह में डिप्टी गवर्नर हैं। मसूद ने कहा- मेरे पिता दो जनजातियों का विवाद सुलझाने वाले हमारे गृह जिले बालाबोलक गए थे। लोग इस यात्रा का गलत मतलब निकाल रहे हैं। हालांकि, यह उनका अपना फैसला है।
धूमधाम से स्वागत
बेटा चाहे जो दलील दे लेकिन, कुछ तस्वीरें और कहानी बयां करती हैं। रविवार को जलील जब तालिबान का हिस्सा बने तो उनका स्वागत धूमधाम से हुआ। गले में तालिबानी पगड़ी और गले में कई हार नजर आए। आतंकी उनके साथ सेल्फी ले रहे थे। तालिबानी झंडे भी देखे जा सकते हैं। नारेबाजी भी हुई। सोशल मीडिया पर फ़ोटो और वीडियो आए।
जलील ने क्या कहा?
पूर्व पुलिस अधिकारी ने तालिबान का हिस्सा बनने के बाद कहा, “बहुत अच्छा होगा यदि देश में इस्लामिक सरकार बने। इससे खूनखराब बंद होगा। मेरे लिए यह बड़ी खुशी का दिन है। इससे दूसरों को प्रेरणा मिलेगी। ” हालांकि, अब तक ये साफ नहीं है कि जलील आखिर आतंकियों के साथ क्यों मिले। उनका फोन भी बंद है। स्थानीय अधिकारी बताते हैं कि जनजातियों का आपसी झगड़ा कारण हो सकता है। ताकतवर बनने के लिए कोई सरकार से मदद लेता है तो कोई तालिबान से।
सरकार ने जलील की मदद नहीं की
फराह से सांसद समीउल्ला समीन कहते हैं, “तालिबान जलील के रिश्तेदारों पर दबाव डाल रहा था। सरकार ने भी उनकी मदद नहीं की। बख्तावर के यहां कई लोकल बिजनेस भी लंबे समय से चल रहे हैं। आतंकवादियों से लड़ने के लिए उन्होंने खुद का संगठन भी बनाया था। उनके कई करीबियों को तालिबान निशाना बनाया गया था। 2018 में वे संसदीय चुनाव भी लड़े। प्राईमरी जीत लेकिन आखिरी राउंड में हार गई। सरकार ने जलील और उनके गुट की कभी मदद नहीं की। उन्हें दिया गया। चुनाव में भी धानधली हुई थी।]
एक कारण यह भी संभव है
जलील के सबसे बड़े बेटे का नाम फरीद था। वे फराह प्रॉविंशियल काउंसिल के अध्यक्ष थे। अक्टूबर 2018 में उनका हेलिकॉप्टर तालिबान के कब्जे वाले इलाके में हुआ। फरीद मारा गया। तालिबान ने कई दिन तक शव अपने कब्जे में रखा। आतंकी अपने एक मारे गए साथी का शव चाहते थे। ये संभव नहीं हुआ। काउंसिल के एक सदस्य दादुल्लाह कानी के मुताबिक, “बख्तावर के निजी संगठन ने तीन तालिबानियों को मार गिराया था। इसके बदले में उन्हें 10 हजार अमेरिकी डॉलर हर्जाने के तौर पर देने पड़े। अब उन्होंने आतंकवादियों के फ्रंटप्रिंटन कर दिया है।]सांसद समीन कहते हैं- सरकार का साथ देने वाले स्थानीय संगठन कभी तालिबान के आगे नहीं झुके। बख्तावर का यह कदम इन संगठनों का हौसला कम करेगा। यह सरकार की भी नाकामी है।